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रबारी, रैबारी, राईका, गोपालक एवं देवासी के नाम से जानेवाली भारत की यह एक अति प्राचीन जाति है।

रबारी, रैबारी, राईका, गोपालक एवं देवासी के नाम से जानेवाली भारत की यह एक अति प्राचीन जाति है। इस जाति के लोग खेती और पशुपालन से जुडे रहे हैं। रैबारीउत्तर भारत की एक प्रमुख एव प्राचीन जनजाति है। रबारी लोग मुख्यतः भारत के गुजरात , राजस्थान , हरियाणा , पंजाब ,मध्यप्रदेश ,और पाकिस्तान के निवासी हैं।[1][2]


इनको अलग-अलग नामों से जाना जाता है। राजस्थान के पाली, सिरोही , जालोर जिलों में रबारी दैवासी के नाम से जाने जाते हैं। उत्तरी राजस्थान जयपुर और जोधपुर संभाग में इन्हें 'राईका' नाम से जाना जाता है। हरियाणा और पंजाब में भी इस जनजाति को राईका ही कहा जाता है। गुजरात और मध्य राजस्थान में इन्हें देवासी, रैबारी, रबारी, नाम से भी पुकारा जाता है।


भारत मैं करीब 1 करोड़ से भी ज्यादा की इनकी जनसंख्या है। पशुपालन ही इनका प्रमुख व्यवसाय रहा था। राजस्थान और कच्छ प्रदेश मैं बसने वाले रबारी लोग उत्तम कक्षा के ऊटो को पालते आए है। तो गुजरात और राजस्थान के रैबारी गाय,भेस, ऊंट जैसे पशु भी पालते है। गुजरात, राजस्थान और सौराष्ट्र के रबारी लोग खेती भी करते है। मुख्यत्व पशुपालन और खेती इनका व्यवसाय था पर बारिश की अनियमित्ता, बढते उद्योग और ज़मीन की कमी की वजह से इस जाति के लोगों ने अन्य व्यवसायों को अपनाया है। पिछले कुछ सालो मैं शैक्षणिक क्रांति आने की वजह से इस जाति के लोगों के जीवन मैं काफी बदलाव आया है। सामाजिक, राजकीय और सिविल सर्विसिस मैं यह जाती के लोग काफी आगे बढ़ रहे हैं बहुत सारे रैबारी जाति के लोग विदेशों में भी रहते है।


भाट और वही-वंचाओ के ग्रंथो के आधार पर, मूल पुरुष को 12 लड़कियाँ हुई और वो 12 लडकीयां का ब्याह 12 क्षत्रिय कुल के पुरुषो साथ कीया गया! जो हिमालयके नियम बहार थे, सोलाह की जो वंसज हुए वो रबारी और बाद मे रबारी का अपभ्रंश होने से रेबारी के नाम से पहचानने लगे, बाद मे सोलाह की जो संतति जिनकी बढा रेबारी जाति अनेक शाखाओँ (गोत्र) मेँ बंट गयी। वर्तमान मेँ 133 गोत्र या शाखा उभर के सामने आयी है जिसे विहोतर के नाम से भी जाना जाता है । रैबारी लोगो के प्रमुख त्यौहार नवरात्री, दिवाली, होली और जन्माष्ठमी है।





  • बस्तियां

मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान,हरियाणा,पंजाब, उत्तरप्रदेश,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र म रबारी जाति ज्यादा पाई जाती ह हरियाणा म एक गांव biran जिला भिवानी में पुष्पेन्द्र रबारी (बार) ह। पुष्पेन्द्र बार अपनी जाति को लेकर बहुत उत्साहित रहते ह इनका मानना ह की रबारी जाति का इतिहास कुछ लोगो ने जानबूझ कर के दबाया ह जो कि आज का युवा जान चुका ह। रबारी जाति एक योद्धा जाति ह न जाने कितने युधो म अपनी जान गंवा गवा कर आज इतने कम संख्या ह रबारी जाति की



  • भोजन

रेबारी, राइका, देवासी जाति का मुख्य काम पशुपालन का है तो ये इनका भोजन मुख्य रूप से दूध, दही, घी, बाजरी की रोटी (होगरा) भड़िया, राबोडी की सब्जी, के साथ देशी सब्जियों सहित शुद्ध शाकाहारी भोजन करते है। मारवाड़ के रेबारी शिक्षित होने के कारण उनकी जीवनशैली मे कुछ परिवर्तन आया है, ये अब शिक्षा के क्षेत्र मे ज़्यादा सक्रिय है।


  • वस्त्र

सीर पर लाल पगड़ी, श्वेत धोती और श्वेत कमीज ओरते-चुनङी,घाघरा,कब्जा(blouse)पहनती है। ईस समाज का पहनावा सबसे अलग हे इसमें पुरुष सिर पर लाल साफा , सफेद कुर्ता , व सफेद धोती पहनते है। ईस समाज मे पुरुषो को मूस रखने का शोक जादा लगता हैं। व घहना भी बहुत पहनते है इसमें महिलाएं लाल चुनरी, घाघरा, ओढ़नी,शिर पर बोर, व चुडा भी पहनती हैं , आज कल शिक्षा का तोर होने से काफी कम हुआ है ईस समाज की सबसे बड़ी विशेषता पुरूषों के हाथो में कडा पहनते हैं। जो जादातर चांदी का होता है। व कोई कानों में लुंग भी पहनते हैं । ईस समाज की प्रमुख विशेषता है


  • समाज

रैबारी की अधिकांश जनसंख्या राजस्थान के जालोर एवम् सिरोही -पाली एव बाँसवाड़ा बाडमेर ज़िलों में है। एव कुछ डूंगरपुर उदयपुर मैं भी निवासरत है। रबारी समाज अति प्राचीन समाज है जो क्षत्रिय कुल से निकली हुई समाज है।



ईस के इतिहाास के अनुसार ई समाज में कई वीर ,योद्धा , दानी, भक्त, सूरवीर, हुए हे। यह समाज विश्व की अति प्राचीन है जो दैवीय शक्तियां से जुड़ी समाज हे। ईस समाज के मुख्य आराधीय देव महादेव, व महा शक्ति को जो सवर्गीय देवता के रूप पूजते है। यह समाज सनातन संस्कृति से जुड़ी हुई है। इस समाज के सभी लोग अपने धर्म का मूलरूप से सम्मान करते है इस समाज के अधिकांश। लोग पशुपालन जैसे गाय,भेस,भेड़,बकरिया,ऊट जो प्राचीन व्यवसाय के रूप मे काम करते थे। समाज में शिक्षा का अवसर मिलने से समाज में काफी सुधार हुआ है। युवा ओधीयोगिक एवम प्रशासनिक सेवा की ओर बढ़े।

  • सन्दर्भ

यह विश्व की सबसे निराली समाज है। ईस समाज में दैवीय सिद्धांत को ज्यादा महत्व है व सभी लोग दैवीय सिद्धांत को मानते हैं यह एक अत्यंत प्राचीन सुरवीर जाती मानी जाती है यह लोग अपने धर्म को ज्यादा महत्व देते हैं।



 
 
 

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